मंगलवार, 29 जुलाई 2025

नाग-पञ्चमी (चन्दन चाचा के बाड़े में)

बरसों पहले पाठ्य पुस्तक निगम की स्कूली शिक्षा की हिंदी बाल-भारती में एक टंग-ट्विस्टर कविता हुआ करती थी। बच्चों और मास्साबों-बहनजियों को भी पढने-पढ़ाने में बड़ा मज़ा आया करता था। इंटरनेट पर इस कविता को लोगों ने बतौरे-याद कई जगह प्रस्तुत किया, मगर कहीं भी सही अनुक्रम में और पूरी कविता सुनने या पढने नहीं मिली। इत्तेफ़ाक से हमें वो पुरानी बाल-भारती ही मिल गई जिसमें यह सम्पूर्ण कविता थी। पढ़कर बचपन की यादें ताज़ा हो गईं। सोचा की क्यों ना इसे आप सब से शेयर किया जाए। फिर ये भी लगा के जब शेयर करेंगे तो लोग कहेंगे कि गा के सुनाते तो और आनंद आता। अतः इसे संगीत-बद्ध करके गाया, रिकॉर्ड किया, वीडियो भी बनाया और यूट्यूब एवं अन्य म्यूजिक चैनलों पर रिलीज़ किया। लीजिए आज नाग-पञ्चमी के शुभ अवसर पर आप सबके लिए प्रस्तुत है :- बाल-भारती की वो सम्पूर्ण मशहूर कविता आपके मित्र बवाल हिन्दवी की आवाज़ में :- (नीचे दिए गए लिंकों पर ऑडियो सुनिए एवं वीडियो ज़रूर देखिए, शायद पसंद आए ) 


नाग-पञ्चमी 

(चन्दन चाचा के बाड़े में)


सूरज के आते भोर हुआ, लाठी लेझिम का शोर हुआ ।

यह नाग पंचमी झम्मक-झम, यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम ।।

 

मल्लों की जब टोली निकली, यह चर्चा फैली गली-गली ।

कुश्ती है एक अजब ढंग की, कुश्ती है एक ग़ज़ब रंग की ।

यह पहलवान अम्बाले का, यह पहलवान पटियाले का ।

ये दोनों दूर विदेशों में, लड़ आए हैं परदेशों में ।

उतरेंगे आज अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।

 

सुन समाचार दुनिया धाई, थी रेलपेल आवाजाई ।

देखो ये ठठ के ठठ धाए, अटपट चलते उद्भट आए ।

थी भारी भीड़ अखाड़े में, चन्दन चाचा के बाड़े में ।।

 

देखो दो बांके शूर चले, देखो नज़रों के नूर चले ।

जब झूम झूम कर चलते थे,  दो गज-शिशु विचल मचलते थे ।

वे भरी भुजाएँ, भरे वक्ष, वे दाँव-पेंच में कुशल-दक्ष ।

जब मांसपेशियां बल खातीं, तन पर मछलियाँ उछल आतीं ।

कुछ हँसते से मुस्काते से, मस्ती का मान घटाते-से ।

मूँछों पर ताव जमाते से, अलबेले भाव जगाते से ।

वे गौर-सलोने रंग लिये, अरमान विजय का संग लिये ।

दो उतरे मल्ल अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।

 

दोनों की जय बजरंग हुई, तब दर्शक-टोली दंग हुई ।

दो हाथ मिले दृग चार हुए, तन से मन से तैयार हुए ।

जब एक पैंतरा हुआ उधर, दूसरा पैंतरा हुआ इधर ।

तालें ठोकीं, हुंकार उठी, अजगर जैसी फुंकार उठी ।

लिपटे भुज से भुज अचल-अटल, दो बबर शेर जुट गए सबल ।

बजता ज्यों ढोल-ढमाका था, भिड़ता बांके से बांका था ।

यों बल से बल था टकराताथा लगता दांव उखड़ जाता ।

जब मारा कलाजंघ कस कर, सब दंग कि वह निकला बच कर ।

बगली उसने मारी डट कर, वह साफ़ बचा तिरछा कट कर ।

दंगल हो रहा अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।

 

दोनों लड़ते थे थम-थम कर, दोनों भिड़ते थे जम-जम कर ।

हो रहे पेंच जाने-माने, कोई ना गिरा चारों खानें ।

घिस्से की मार गर्दनों पर, जब जोश चढ़ा मर्दानों पर ।

फिर खीज बढ़ी फिर जोश बढ़ा, हल्ले-गुल्ले का लोभ बढ़ा ।

 फिर पकड़-पकड़ फिर उठा-पठक, इसने दाबा वह गया सटक ।

फिर अगल बगल से वार हुए, फिर हाथ-सजग दो-चार हुए ।

जब यहाँ चली टंगड़ी अंटी, बज गई वहाँ घन-घन घंटी।

भगदड़ मच गई अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में॥

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यूट्यूब का लिंक:



यूट्यूब म्यूज़िक लिंक:



अब उपलब्ध है सभी म्यूज़िक प्लेटफॉर्म्स पर:
https://distrokid.com/hyperfollow/bavaalhindvee/naag-panchmi-kushti-chandan-chacha-ke-baade-mein


काश वो संपेरों की बीन फिर सुनाई देने लगे - काश स्कूलों में  और अखाड़ों में उसी उत्साह से कुश्तियाँ लड़ी जाने

लगें - काश नाग पञ्चमी पर फिर वही मजेदार जादूगरी बाजियाँ हों | काश .....

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

भ्रम रोमांचित करता है जब किसी की नई नई तोंद निकलना शुरू होती है तो वो बंदा बड़े दिनों तक डिनायल मोड में रहता है. वह दूसरों के साथ साथ खुद को भी भ्रमित करने की कोशिश में लगा रहता है. कभी टोंकते ही सांस खींच लेगा और कहेगा कहाँ? या कभी कहेगा आज खाना ज्यादा खा लिया तो कभी कमीज टाईट सिल गई जैसे बहाने तब तक बनाता रहता है जब तक कि तोंद छिपाए न छिपे और खुद के बस के बाहर ही न निकल जाए. भ्रम रोमांचित करता है इसलिए यथार्थ से अधिक प्रिय होता है. भ्रम आपको अपने मन के मुताबिक़ खुश होने का मौका देते है. आज की भागती दौड़ती जिंदगी में चंद लम्हें भी ख़ुशी के मिल जाएँ तो मानो जीवन सार्थक हो जाता है और भागते दौड़ते रहने के लिए नई ऊर्जा मिल जाती है.. शायद इसी सोच को पोषित करने हेतु ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल जैसे खेल बनाये गए होंगे. खेल इसलिए कहा क्यूंकि मुझे तो आजतक कोई नहीं मिला जिससे ओपिनियन ली गई हो या वोट डालकर निकलते वक्त किसे ने पूछा हो कि किसको लगा आये? शायद मेरा ही परिचय का दायरा छोटा हो मगर मेरी बातचीत का आधार तो वही हो सकता है. जब हम बचपन में परीक्षा देकर घर लौटते तो अम्मा पूछा करती थी कि पेपर कैसा हुआ? हम वही रटा हुआ जबाब देते की १०० में १०० आना चाहिए, पूरा सही किये हैं. जितना वो हमें जानती थीं उतना ही हम उनको जानते थे तो घर लौटने के पहले तेज बच्चो से सारे प्रश्नों का उत्तर पता करके आते और पूछने पर सही वाला बता देते. इन सब खटकर्मों के पीछे मात्र इतनी मंशा होती कि काहे दो बार पिटना? जब रिजल्ट आएगा तब तो फुड़ाई होना ही है, आज तो इत्मिनान से खेलें और खुश हो लें. रिजल्ट आने पर कह देते थे कि मास्साब से ट्यूशन नहीं पढ़ी इसलिए गलत कॉपी जांच दी है, मानो न जीत पाने का आरोप इवीएम पर लगा रहे हों. मगर अम्मा सब समझती थीं. बाद में जब थोड़ा बड़े होने लगे तो हमारा १०० में से १०० का जबाब सुनकर अम्मा एक मुहावरा बोला करतीं: नाऊ भाई नाऊ भाई कितने बाल.. सरकार दो घड़ी में आगे ही गिरेंगे.. मगर आज के ओपिनियन और एक्जिट पोलक नाऊ इतना सीधा और सच्चा कहाँ बोलते हैं? जब से नाऊ की दुकान पार्लर में बदली है, तब से नाऊ भी स्टाइलिस्ट कहलाने लगे हैं. ये वही कहते है जैसा ग्राहक सुनना चाहता है. पहले का नाऊ मोहल्ले भर के खूफिया किस्से सुनाता था और आज का नाऊ ग्राहक की पसंद के नए गानों की प्ले लिस्ट बजाता है. ओपिनियन और एक्जिट पोलक नाऊ को भी पता है कि बस नतीजे आने को ही हैं फिर भी एक अंतिम बार अपने आकाओं को खुश करने के लिए ही सही, उनकी पसंदीदा स्वरलहरी सूनाता है. बिहार में तो असली नतीजे आ जाने पर भी एक्जिट पोल के नतीजे सुना डाले थे. वैसे इस तरह के पोल के नतीजों की खासियत यह रहती है कि ओपिनयन पोल में जो जीत रहा होता है वो पूरे विश्वास के साथ बताता है कि हम क्या बोलें, आप खुद ही देख लिजिये ओपिनियन पोल के नतीजे..यही जनता की मंशा है और जिसे ओपिनियन पोल हारा दिखा रहे होते हैं वो कल नतीजे आने तक रुकने की बात कहते हुए हमारी अम्मा के मुहावरे का पूर्ण भक्ति भाव से मुस्कराते हुए उच्चारण करता है: नाऊ भाई नाऊ भाई कितने बाल.. सरकार दो घड़ी में आगे ही गिरेंगे... वह एकाएक मंझा हुआ चुनावी विश्लेषक बन जाता है और मय माह और तारीख के पुराने २० सालों के उन सारे ओपिनियन पोलों का ब्यौरा सामने रखने लग जाता है जिसमे ओपिनियन पोल उन्हें हारा दिखा रहे थे और बाद में असली नतीजों में वह जीत गए थे. तारीफी यह कि ब्यौरा देते वक्त वो उन चुनावों को गायब कर जाता है जिसमें ओपिनियन पोल सही साबित हुए थे. ओपिनियन और एक्जिट पोल के नतीज़ों पर यह बात भ्रष्टाचार की तरह ही दलगत राजनीत से ऊपर की है और सभी दल इसका अक्षरशः पालन करते हैं. दो घड़ी में असली नतीजे आ ही जाते है. जीते हुए सूरमाओं की जीत की ख़ुशी में बजते ढोल की आवाज में ओपिनियन पोल की आवाज गोल हो जाती है. .. इसके बाद बस टीआरपी का जरिया बदल जाता है – नई सरकार और नया विपक्ष जो आ जाता है. -समीर लाल ‘समीर’